कविता : बाबा बुला रहे है।।
ओ भिम के प्यारो जाओ ना घर आपना छोडकर
बाबा बुला रहे है बाहें पसारकर ||धृ||
कहां था मैंने पडो लिखों एक जुंट राहों
न्याय हक्क खातिंर मिलकर संघर्ष करो
उठ रहा हैं देखों मनू वादीयोंका सर
बाबा बुला रहे है बाहें पसारकर ||२||
हों रही खैरलांजी लूट रही माॅ बहिणों कि ईज्जत
पुंकार रहें है अब आकर करों मदत
कब आओगे तुम आपना अहंकार छोंड कर
बाबा बुला रहे है बाहें पसारकर ||२||
जमी तुम्हारी घर तुम्हारा तुम्हारी बस्तियां
इन सबको छोंडकर जाते हों तुम कहां
लौंट आओ घर प्यारों सारे मोह छोंड कर
बाबा बुला रहे है बाहें पसारकर ||3||
- कवी नरेश गंगाराम जाधव (भिवंडी)
मो.७५१७३८९७४६




Very nice poem
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